Wednesday, December 19, 2018

सऊदी अरब आख़िर कहां से लाता है पानी

सऊदी अरब में तेल की बात तो अक्सर होती है लेकिन पानी की बात अब ज़्यादा ज़रूरी हो गई है. तेल के कारण सऊदी अमीर है पर पानी की प्यास यहां लगातार बढ़ती जा रही है.
सितंबर 2011 में सऊदी में एक माइनिंग से जुड़े एक फ़र्म के उपप्रमुख मोहम्मद हानी ने कहा था कि यहां सोना है पर पानी नहीं है और सोने की तरह पानी भी महंगा है.
16वीं सदी के कवि रहीम का वो दोहा सऊदी अरब पर इस मामले में फिट बैठता है- रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून.
सऊदी तेल बेचकर बेशुमार कमाई कर रहा है लेकिन इस कमाई का बड़ा हिस्सा समंदर के पानी को पीने लायक बनाने में लगाना पड़ रहा है. यहां न नदी है न झील. कुंए भी हैं तो तेल के न कि पानी के. पानी के कुंए कब के सूख गए.
2011 में ही सऊदी के तत्कालीन पानी और बिजली मंत्री ने कहा था कि सऊदी में पानी की मांग हर साल सात फ़ीसदी की दर से बढ़ रही है और अगले एक दशक में इसके लिए 133 अरब डॉलर के निवेश की ज़रूरत पड़ेगी.
सऊदी अरब सालीन (खारा) वाटर कन्वर्जन कॉर्प (एसडब्ल्यूसीसी) हर दिन 30.36 लाख क्यूबिक मीटर समंदर के पानी को नमक से अलग कर इस्तेमाल करने लायक बनाता है.
यह 2009 का आंकड़ा है जो अब बढ़ा ही होगा.
सऊदी ने 2015 में ही पानी के व्यावसायिक इस्तेमाल पर टैक्स बढ़ा दिया था. सऊदी पानी पर टैक्स इसलिए बढ़ा रहा है ताकि उसका बेहिसाब इस्तेमाल रोका जा सके.
कई रिसर्चों का कहना है कि सऊदी अरब का भूमिगत जल अगले 11 सालों में पूरी तरह से ख़त्म हो जाएगा. सऊदी अरब के अरबी अख़बार अल-वतन की रिपोर्ट के मुताबिक़ खाड़ी के देशों में प्रति व्यक्ति पानी की खपत दुनिया भर में सबसे ज़्यादा है. सऊदी अरब में प्रति व्यक्ति पानी की खपत हर दिन 265 लीटर है जो कि यूरोपीय यूनियन के देशों से दोगुनी है.
सऊदी अरब में एक भी नदी या झील नहीं है. हज़ारों सालों से सऊदी के लोग पानी के लिए कुंओं पर निर्भर रहे लेकिन बढ़ती आबादी के कारण भूमिगत जल का दोहन बढ़ता गया और इसकी भारपाई प्राकृतिक रूप से हुई नहीं. धीरे-धीरे कुंओं की गहाराई बढ़ती गई और वो वक़्त भी आ गया जब सारे कुंए सूख गए.
सऊदी में कितनी बारिश होती है? तलमीज़ अहमद सऊदी अरब में भारत के चार साल राजदूत रहे हैं. वो कहते हैं कि सऊदी में हर साल दिसंबर-जनवरी में तूफ़ान के साथ बारिश आती है लेकिन ये एक या दिन ही होती है.
मतलब साल में एक या दो दिन बारिश होती है. हालांकि ये विंटर स्टॉर्म की शक्ल में आती है और इससे ग्राउंड वाटर पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. तलमीज़ कहते हैं कि ये बारिश कोई ख़ुशहाली नहीं बल्कि बर्बादी लेकर आती है. वो कहते हैं कि जॉर्डन और सीरिया में बारिश होती है तो सऊदी के लोग काफ़ी खु़श होते हैं क्योंकि वहां की बारिश के पानी से सऊदी के ग्राउंड वाटर पर फ़र्क़ पड़ता है.
इसका रोज़ का खर्च 80.6 लाख रियाल आता है. उस वक्त एक क्यूबिक मीटर पानी से नमक अलग करने का खर्च 2.57 रियाल आता था. इसके साथ ही ट्रांसपोर्टिंग का खर्च 1.12 रियाल प्रति क्यूबिक मीटर जुड़ जाता है.

No comments:

Post a Comment