महाराष्ट्र में 12 नवंबर से राष्ट्रपति शासन जारी था. 23 नवंबर की रात इसे हटाया गया और उसके बाद सरकार का गठन हुआ.
सवाल
उठाया जा रहा है कि राष्ट्रपति शासन हटाने के लिए कैबिनेट की मंजूरी की ज़रूरत होती है, ऐसे में रात भर में कैबिनेट की मंजूरी कैसे ली गई?
यह सवाल कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाल ने पार्टी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी उठाया.
इस
सवाल के जवाब में केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि यह 'एलोकेशन ऑफ़ बिज़नेस रूल्स' के रूल नंबर 12 के तहत लिया गया फ़ैसला है और
वैधानिक नज़रिए से बिल्कुल ठीक है."
रूल नंबर 12 कहता है कि
प्रधानमंत्री को अधिकार है कि वे एक्सट्रीम अर्जेंसी (अत्यावश्यक) और अनफ़ोरसीन कंटिजेंसी (ऐसी संकट की अवस्था जिसकी कल्पना न
महाराष्ट्र में चले सियासी ड्रामे के बीच एक बार फिर संवैधानिक पद पर
बैठे राज्यपाल की भूमिका सवालों के घेरे आ गई है. सवाल उठाए जा रहे हैं कि आखिर उन्होंने एनसीपी के किन विधायकों के समर्थन की चिट्ठी प्राप्त की और
अगर उनके पास देवेंद्र फडणवीस
इस पर उल्हास बापत कहते हैं, ''यह बातें निश्चित तौर पर राज्यपाल पर सवाल उठाने का काम करती हैं. उन्हें देवेंद्र फडणवीस से पूछना चाहिए था कि
सरकार बनाने के लिए जो विधायक उनके साथ हैं उनके सिर्फ हस्ताक्षर ही नहीं
चाहिए वो खुद भी राजभवन में मौजूद होने चाहिए.''
ख़ैर फडणवीस के शपथ
ग्रहण का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. शिव सेना ने देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार के शपथ ग्रहण को चुनौती देने वाली याचिका दायर की. अब
देश की सर्वोच्च अदालत ही यह फ़ैसला करेगी कि रात में बनी इस सरकार में कितने नियमों को ताक रखा गया.
सरकार बनाने के लिए आए भी तो उन्होंने सुबह
तक का इंतज़ार क्यों नहीं किया?
कांग्रेस ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी पर अमित शाह के हित के लिए काम करने का आरोप लगाया.
इस
बात पर उल्हास बापत भी अपनी सहमति जताते हैं. वो कहते हैं, ''राज्यपाल जो
शपथ लेते हैं उसमें वो लोगों के हित में फ़ैसले लेने की बात करते हैं लेकिन
हक़ीक़त ऐसी नहीं रहती. असल में राज्यपाल का पद प्रधानमंत्री की इच्छा पर
ही निर्भर रहता है. सरकारें ही राज्यपालों की नियुक्तियां देखती हैं, इसलिए वो भी सरकारों के पक्ष में ही फ़ैसले करते हैं. यह रास्ता इंदिरा गांधी के
समय से शुरू हुआ और अब नरेंद्र मोदी तक चला आ रहा है.''
महाराष्ट्र
में जिस तरह से राजनीतिक हालात लगातार बदल रहे हैं. उसमें एनसीपी प्रमुख
शरद पवार ने एक बार फिर दावा किया कि उनके अधिकतर विधायक उन्हीं के साथ बने
हुए हैं. ऐसे में बीजेपी की सरकार ने जो बहुमत साबित करने की बात कही है
उस पर सवाल उठने लगे हैं.
की जा सके) में
अपने-आप निर्णय ले सकते हैं.
उल्हास बापत इस बारे में बताते हैं,
''संविधान में यह बताया गया है कि जब भी राष्ट्रपति कोई निर्णय लेते हैं तो
वह इसके लिए कैबिनेट की मंजूरी लेते हैं.''
''अब इस मामले में
कैबिनेट की बैठक कब हुई यह साफ़ नहीं है. फिर भी नियमों के अनुसार अगर प्रधानमंत्री अकेले भी राष्ट्रपति के फै़सले पर मंजूरी देते हैं तो वह भी कैबिनेट की ही मंजूरी मानी जाती है.''
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